रोग दो प्रकार के होते हैं
१) वे जिनकी उत्पत्ति किसी जीवाणू बैक्टीरिया, पैथोजन, वायरस, फंगस आदि से होती है, उदाहरणार्थ- क्षयरोग (टी.बी.), टाइफाइड, टिटनेस, मलेरिया, न्यूमोनिया आदि |
इन बीमारियों की तीन विशेषताएं हैं-
- इन बीमारियों के कारणों का पता परीक्षणों से आसानी से लग जाता है |
- क्योंकि इन बीमारियों के कारणों का पता लग जाता है तो इनको ठीक करने की दवाएं भी विकसित की जा चुकी हैं |
- यह बीमारियां जल्द ही स्थाई रुप से ठीक की जा सकती है |
२) वे जिनकी उत्पत्ति किसी भी जीवाणु, बैक्टेरिया, पैथोजन, वायरस, फंगस आदि से कभी भी नहीं होती | उदाहरणार्थ- अम्लपित्त, दमा, गठिया, जोड़ों का दर्द, कर्करोग, कब्ज, मधुमेह, ह्रदय रोग, बवासीर, भगंदर, रक्तार्श, आधा शीशी, सिर दर्द, प्रोटेस्ट आदि |
इन बीमारियों की भी तीन विशेषताएं हैं-
- इन बीमारियों के कारणों का पता नहीं लग पाता |
- क्योंकि इन बीमारियों के कारणों का पता नहीं लग पाता तो इनको ठीक करने की दवा भी विकसित नहीं की जा सकती |
- इनमें से कोई भी बीमारी एक बार हो जाए तो उस व्यक्ति को बीमारी होने के दिन से चिता पर लेटने वाले दिन तक औषधि लेनी पड़ती है | इसलिए इन बीमारियों को दीर्घकालीन असाध्य रोगों की संज्ञा दी गई है आज के समय में इन बीमारियों को ठीक करने का जो सबसे आधुनिक उपचार उपलब्ध है वह इस प्रकार है उदाहरण-
पेट की अम्लता पानी पीने के प्राकृतिक नियमों का पालन न करने से, पाचन तंत्र में किसी खास बिगाड़ व विकारों के कारण उत्पन्न होती है | इसको ठीक करने के लिए आधुनिक उपचार के अंतर्गत एक व्यक्ति को अल्कली (क्षार) की गोलियां दी जाती है | यह क्षार पेट में जाकर एसिड को नष्ट कर देता है और हमें लगता है कि हम ठीक हो गए, लेकिन वास्तव में हमारा भारी नुकसान हो जाता है | इसे एक वैज्ञानिक सिद्धांत के द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है जो कि इस प्रकार है- “इन ए सिस्टम एट इक्विलिब्रियम, इफ़ ए कांस्टेंट इज ब्रॉट, द इक्विलिब्रियम शिफ्ट्स टू ए डायरेक्शन सो एस टू आनल द इफ़ेक्ट” माने जैसे-जैसे आप किसी दवाई द्वारा पेट की एसिडिटी मिटाएंगे वैसे-वैसे पेट एसिड बनाता जाएगा और बीमारी को दीर्धकालिक असाध्य बना देगा | यह समस्या बढ़ते-बढ़ते पेट के अल्सर के रूप में बदल जाएगी और अंत में पेट का कैंसर भी हो सकता है |
ब्लडप्रेशर हो जाने पर व्यक्ति को ऐसी दवा दी जाती है, जिससे रक्तवाहनियाँ लचीली हो जाए व उनका व्यास बढ़ जाए | व्यास बढ़ जाने पर विज्ञान का दूसरा सिद्धांत लागू हो जाता है जो इस प्रकार है- फोर्स= प्रेशर/एरिया, व्यास बढ़ जाने पर फोर्स कम हो जाता है, फोर्स कम हो जाने से उच्च रक्तचाप कम हो जाता है | इस औषधि से रक्त वाहिनियों का, जो की इलास्टिक होती है, प्रसरण किया जाता है | रक्तवाहनियाँ इलास्टिक होने के कारण 24 घंटे के भीतर अपने मूल व्यास में आ जाती है | इसीलिए चिकित्सक हमें रोज एक गोली लेने का सुझाव देते हैं और अंत में यह बीमारी दीर्घकालीन असाध्य बन जाती है |
ऐसा होने पर डॉक्टर बलून एंजीओप्लास्टी करते हैं, इस क्रिया में रक्त वाहिनी में जिस जगह ब्लॉक है उस भाग को फैलाया जाता है | इस से ब्लॉक हो तो जस का तस रहता है लेकिन ब्लॉक के बाजू में जगह पैदा की जाती है जिसके कारण से रक्ताभिसरण आरंभ हो जाता है | यहां पर विचार करने की बात है कि ब्लॉक को कोई सा भी उपचार नहीं दिया जाता है व फैलाई हुई रक्त वाहिनी कुछ ही समय में मूल व्यास पर आ जाती है और रक्ताभिसरण रुक जाता है | अब इस अवस्था में चिकित्सक इस ब्लॉक के पास एक स्प्रिंग डाल देते हैं जिसे स्टेंट कहते हैं | स्टेंट डालने के बाद रक्त का प्रवाह उस स्प्रिंग के अंदर से आरंभ हो जाता है | इस स्प्रिंग को डालने से 22 प्रतिशत व्यक्तियों में फिर से ब्लॉक आ जाता है जो कि वाउंड हीलिंग वह फॉरेन बॉडी के कारण होता है |
इस रोग का आधुनिकतम उपचार या तो रोगी को दर्द निवारक औषधि देना और जब पेन किलर काम करना बंद कर दे तो स्टेरॉयड देना जो की स्वयं में २० से २५ भयंकर रोगों को जन्म देता है | घुटने के दर्द की चरम अवस्था में घुटने को बदलकर कृत्रिम घुटने लगा देते हैं जो कि कुछ सालों बाद अनेक समस्याएं पैदा कर जीना मुश्किल कर देता है |
इस प्रकार आप देखेंगे कि असाध्य रोगो के उपचार में रोग से उत्पन्न होने वाले केवल लक्षणों को ही कुछ समय के लिए दबा दिया जाता है और इसी कारण बीमारी असाध्य और दीर्घकालीन बन जाती है जबकि इनको ठीक करना संभव है |
जबकि जो शरीर भगवान ने मनुष्य को सतयुग में दिया था ठीक वही शरीर कलयुग में भी मनुष्य को दिया है | वही वेग जैसे हंसना, रोना, प्यास आदि, वही संस्थाएं जैसे श्वसन संस्था, रक्ताभिसरण संस्था, पचन संस्था, मल मूत्र विसर्जन संस्था आदि बिना रत्ती भर भी अंतर के | जब सतयुग के लोग निरोगी व दीर्घ आयु वाले थे और जीवन के आखिरी पल तक स्वावलंबी थे, फिर हम कलयुग के मानवों को इतनी बीमारियां क्यों ? हम अल्पायु के क्यों ?
हम कोई भी मशीन अथवा उपकरण लेते हैं तो उसका ऑपरेटिंग मैनुअल पढ़े बिना उसे नहीं चलाते, लेकिन यह कैसी विडंबना है कि दुनिया की सबसे जटिल मशीन मानव देह जो स्वयम एक अपने जैसी मशीन को जन्म देने की क्षमता रखती है, को बिना किसी ऑपरेटिंग मैनुअल पढ़े चलाते हैं | शायद यही कारण हो कई दीर्घकालीन असाध्य बीमारियां पैदा होने का व अल्प आयु का |
प्रकृति द्वारा दी गई हानिकारक पदार्थों को निष्कासित करने की क्षमता का उलंघन:- यदि किसी नवजात शिशु को शरीर के लिए हानिकारक वस्तु खिलाई जाए तो वह तुरंत थूक देगा | यदि और खिलाई जाए तो वह तुरंत उल्टी कर के शरीर से बाहर कर देगा या दस्त, कफ, चमड़ी (फोड़े फुंसी) आदि मार्ग से बाहर निकाल देगा | लेकिन जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं वैसे-वैसे हम इस प्राकृतिक क्षमता को अनदेखा कर के केवल जीभ के सुख के लिए हानिकारक पदार्थ खाते जाते हैं व इस प्राकृतिक क्षमता को नष्ट कर देते हैं व कई दीर्धकालिक असाध्य बीमारियां पैदा होने को अवसर देते हैं |