- घटक पदार्थ : गोमय (गोबर)
- बनाने की विधि
- गोमूत्र अथवा गोमय एकत्र करें ।
- जब गाय गोबर दे रही हो, तब भूमि पर गिरने से पहले ही उसे बांस की टोकरी में अथवा केले के पत्ते समान बड़े पत्ते पर रोक लें । भूमि पर गिरा हो गोबर न लें ।
- गाय के गोबर देने के लगभग 3 घंटे पश्चात गोबर में कीड़े बनना आरंभ होता है । इसलिए गोमय मिलते ही बड़े पत्ते अथवा बांस की चटाई पर इसके उपले थाप दें । इन उपलों को (कंडो को) कड़ी धूप में सुखा लें ।
- उपले जब अच्छे से सूख जाएं, तब उन्हें आवश्यक संख्या में लेकर, नीचे दिए चित्र के अनुसार घी का एक दीया रखने के लिए स्थान छोड़कर, एक के ऊपर एक उपले रखें । दीया और उपले में इतना अंतर रखे कि भीतर रखा दिया जलाया जा सके तथा उसे जलाने पर उसकी लौ ऊपर के उपले को लगे ।
- अब भीतर रखा घी का दीया जलाएं इससे सभी उपले धीरे-धारे जलने लगेंगे । उपले पूरे जल जाने पर वह भुरभुरे हो जाते हैं; परंतु रहते उसी आकार और स्थिति में है ।
- ये जले हुए उपले धीरे से एक-एक कर उठाएं और बोरी में भर लें तथा बोरी को मुंह बांध दें । अब इस बोरी को लाठी से पीट-पीट कर, जले हुए उपलों का चूर्ण बना दें ।
- उपले के इस चूर्ण को बारीक चलनी से छान लें । यह चूर्ण ही ‘गोमय भस्म’ है ।
- इस प्रकार से बनाई भस्म वायु रोधक बरनी में रखें ।
- गोबर से उपले बनने का कार्य कड़ी धूप के समय ही करें । इसके लिए उपले मकर सक्रांति से लेकर वर्षाऋतु आरंभ होने के पहले तक बना लें । इन सूखे उपलों को जलाकर, गोसय भस्म पूरे वर्ष में कभी भी बनाई जा सकती है ।