हमारे भोजन की दिनचर्या अत्यधिक बिगड़ गर्इ है ना तो हम अपनी प्रकृति के अनुसार भोजन करते हैं और ना ही सही समय पर भोजन करते हैं । देर रात में भोजन करना सबसे हानिकारक है क्योंकि उस समय हमारी जठराग्नि सबसे मंद होती है जिसके कारण भोजन का पाचन भली-भांति नहीं हो पाता और वह सड़कर कर्इ प्रकार की बीमारियों को जन्म देता है। दिन में सूर्य के प्रकाश के ताप से जठराग्नि सबसे अधिक सक्रिय रहती है जो भोजन के पाचन के लिये उत्तम है इसलिये महर्षि वागभट्ट ने कहा है कि प्रातः काल सूर्योदय से ढाई घण्टे के अन्दर भरपेट भोजन करना चाहिये क्योंकि उस समय जठराग्नि सबसे तीव्र होती है। फिर दोपहर के बाद शाम को 4-6 बजे के बीच में भोजन ग्रहण करना चाहिए क्योंकि सूर्यास्त के बाद जठराग्नि मंद होने लगती है । इसलिए रात में भोजन ना करें।
- सुबह भोजन के तुरन्त बाद ऋतु के अनुसार किसी भी फल का रस ले सकते हैं।
- दोपहर में खाने के तुरन्त बाद छाछ या मठ्ठा ले सकते हैं।
- शाम के भोजन के बाद, रात में दूध पीकर सोना सर्वोत्तम है।
भोजन की दिनचर्या में इतना भी परिवर्तन हो जाये तो स्वास्थ्य काफी अच्छा रहता है। भोजन जब भी करें तो ज़मीन पर चौकड़ी मारकर ही करें क्योंकि हमारे कूल्हों के ऊपर एक चक्र होता है जिसका सीधा सम्बन्ध जठराग्नि से होता है इसलिए सुखासन (आल्ति-पालती) मारकर सीधे बैठकर भोजन ग्रहण करने से जठराग्नि तीव्रता से काम करती है, परन्तु जब हम कुर्सी पर बैठकर या खड़े होकर भोजन करते हैं तो इसका ठीक उल्टा होता है इसलिये कभी भी खड़े होकर या कुर्सी में बैठकर भोजन नहीं करना चाहिये ।
भोजन लेने के बाद दस मिनट वज्रासन में अवश्य बैठना चाहिए जिससे हमारा भोजन अच्छी तरह से अमाशय में पहुँच जाता है। 24 घण्टे में यदि हम एक बार भोजन करें तो वह सबसे अच्छा पचता है क्योंकि शरीर में बनने वाला पाचक रस पूर्ण रूप से उसी कार्य में प्रयुक्त होता है इसीलिये ऋषि-मुनि तपस्वी लोग एक बार के भोजन से ही लम्बी आयु जीते थे।
अगर दो बार भोजन करें तो भी अच्छा है सामान्य रुप से कम से कम दो बार अवश्य भोजन करें और अधिक से अधिक 24 घण्टे में 3 बार ही भोजन करें, क्योंकि हम जितनी अधिक बार भोजन करते हैं हमारा पाचक रस उतनी मात्रा में बँटता जाता है और पाचन की शक्ति कम होती जाती है।
लाभ:- पित्त की अधिकता के कारण होने वाले रोगों से छुटकारा मिलता है। अपच, खट्टी डकारें, अम्लता, एसिडिटी, रक्त विकार, उच्च रक्तचाप, मोटापा आदि रोगों में लाभ प्राप्त होता है।