केवल भोजन और पानी से बने शरीर में यदि बीमारी आती है तो सबसे पहले भोजन और पानी की और ही देखना चाहिए |
केवल भोजन और पानी से बने शरीर में यदि बीमारी आती है तो सबसे पहले भोजन और पानी की और ही देखना चाहिए |
यदि हम 24 घंटे का निरीक्षण करें तो यह पाएंगे कि 24 घंटो में नैसर्गिक रूप दिन में केवल दो बार लगती है | सूर्योदय से 2 घंटे तक और दूसरी सूर्यास्त के जरा पहले | इन दो समय के अलावा लगने वाली भूख कृत्रिम होती है | उदाहरण- आप अपने प्रिय भोजन वस्तु को देख ले, सुंघ ले अथवा चख लें तो आप के मुख में लार आ जाएगी और आपको पेट में भूख अनुभव होगी | ऐसी भूख कृत्रिम होती है जो बीमारी पैदा करती है | नैसर्गिक भूख के अंतर्गत खाया गरिष्ठ से गरिष्ठ वह भरपेट भोजन भी आसानी से पच जाता है, व उसका रस भी उत्तम बनता है जो निरोगी शरीर व दीर्घायु प्रदान करने वाला होता है |
पेट (जठर) सवेरे 7:00 से 9:00 बजे तक अधिक कार्य क्षमता से काम करता है | भोजन जठर में पचने के 2 से 3 घंटे बाद Duodenum में जाता है जहां अग्नाशय हर प्रकार के भोजन को पचाने का रस छोड़ती है यह अग्नाशय सवेरे 9:00 से 11:00 बजे तक अधिक कार्य क्षमता में रहती है | Duodenum में पचने के बाद भोजन से रस का रक्त में शोषण छोटी आँत में होता है | इस शोषण के लिए ज्यादा रक्त की आवश्यकता पड़ती है इसलिए हर सवेरे 11:00 से 1:00 बजे तक और छोटी आँत 1:00 से 3:00 बजे तक अधिक कार्य क्षमता में रहती है | यही कारण है कि सवेरे 7:00 से 9:00 बजे तक नैसर्गिक भूख के अंतर्गत खाया गरिष्ठ से गरिष्ठ भोजन भी आसानी से पच जाता है |
शुल्क लिया जाएगा केवल औषधियों का वो निर्भर करेगा आपकी परिस्थिति पर
[elfsight_popup id="2"]My content[elfsight_popup id="2"]सवेरे 6:00 बजे से 10:00 बजे तक हमारे शरीर में कफ की प्रधानता रहती है और कफ के प्रभाव में भूख भी खूब लगती है वह भोजन का पाचन भी अच्छी तरह से होता है | अतः सवेरे ही दिन का सबसे गरिष्ठ भोजन लेना चाहिए, इसके अन्य महत्वपूर्ण कारण निम्न है-
१) सवेरे 7:00 से 9:00 बजे तक पेट 24 घंटों में सबसे ज्यादा सक्रिय है वह सबसे कार्यक्षम रहता है |
२) हमारे पेट के एसिड द्वारा पेट की अंदरूनी परत को पहुंची क्षति की क्षति पूर्ति रात भर में ही होती है |
३) रात भर में ही डेढ़ लीटर तक के पाचक रस का निर्माण होता है |
४) सवेरे के पहले तक हमारी पचन संस्था में एकत्रित मल को पेट से निकालकर मलाशय तक पहुंचाया जाता है इसे मयो इलेक्ट्रिक कांपलेक्स कहते हैं |
५) सवेरे के समय पाचक रस का स्राव धीरे धीरे होता है वह पाचक रस पेट में अधिक काल तक रहते हैं |
दोपहर को शरीर में पित्त की प्रधानता रहती है वह पाचक रस का स्त्राव तेजी से होता है व पाचकरस थोड़े ही समय तक पेट में रहते हैं, अत: यदि लेना ही पड़े तो दोपहर को हल्का, ताजा व शीघ्र पचने वाला थोड़ा भोजन लेना चाहिए, दोपहर को भोजन तब ही लें जब आपने सवेरे किए हुए भोजन का शारीरिक श्रम या गतिविधि द्वारा पूर्ण इस्तेमाल कर लिया हो |
इसी प्रकार शाम को हम वात प्रधान हो जाते हैं | अतः भोजन सूर्यास्त से पहले समाप्त कर लें वह भोजन वातशामक हो, दूध पीने का आरोग्य की दृष्टि से सबसे अच्छा समय है सूर्यास्त के बाद | दूध केवल देशी गाय का ही ले |
रात्रि का भोजन हमें सूर्यास्त के पहले कर लेना चाहिए | इसका वैज्ञानिक आधार है कि पेट की कार्य क्षमता शाम को 7:00 से लेकर 9:00 बजे तक कम हो जाती है | पेट में भोजन पचने के 2 से 3 घंटे बाद Doudenum में जाता है | जहां अग्नाशय पैंक्रियास हर प्रकार के भोजन को पचाने का रस छोड़ता है, लेकिन यह अग्नाशय रात्रि को 9:00 से 11:00 बजे तक काम कार्य क्षमता में रहती है | इसी प्रकार हृदय रात्रि 11:00 से 1:00 बजे तक और छोटी आँत रात्रि 1 से सवेरे 3 बजे तक, कम कार्यक्षमता में रहती है | अर्थात पचन क्रिया से संबंधित अवयव उदाहरणार्थ पेट, अग्नाशय, हृदय व छोटी एवं बड़ी आँत क्रम से शाम 7 से लेकर सवेरे 3 बजे तक कम कार्यक्षमता में रहती है | इसका अर्थ यह हुआ कि भोजन का पचन शाम 7:00 से 3:00 बजे तक ठीक से होना संभव नहीं और ठीक से न पचा हुआ भोजन ही अनेक रोगों को जन्म देता है | प्राचीन ग्रंथों के अनुसार हमें भोजन शाम को सूर्यास्त से पहले समाप्त कर लेना चाहिए | हमारा प्राचीन विज्ञान यह कहता है कि यदि हम भोजन शाम को 7:00 बजे के पहले कर लें और दूसरे दिन का भोजन सवेरे 9:00 बजे भी करें तो भी हमारा पेट भोजन के एक कण के बिना कम से कम 9 घंटे रहेगा |
आधुनिक विज्ञान के अनुसार यदि पेट को 9 घंटे बिना भोजन के रखा जाए तो उसमें एक शुध्दीकरण की क्रिया आरंभ हो जाती है, जिसमें पेट Peristaltic Movement के समान एक मयोएलेकट्रिक कांपलेक्स वेव आरंभ कर देता है जो मल व जीवाणुओं की मृत कोशिकाओं तथा अन्य कचरे को इस वेग द्वारा 11 घंटे में पेट से निकालकर गुदा द्वार तक पहुंचा देता है | एक तो इन 9 से 11 घंटों में हमारी पचन संस्था पेट में आने वाले दूसरे भोजन को लगने वाले पाचक रस तैयार कर लेती है और दूसरे हमारे पेट के अंदर के एसिड द्वारा जो क्षति पेट के म्यूकस मेंब्रेन को पहुंचती है वह क्षति भी इन 9 घंटो में दुरुस्त कर दी जाती है | इस प्रकार हम पाचन संस्था को सशक्त एवं सक्रिय रख सकते हैं वह पेट से संबंधित कई दीर्घकालीन असाध्य बीमारियों से बच सकते हैं |
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[elfsight_popup id="2"]My content[elfsight_popup id="2"]हमारा पेट 24 घंटे में एक से डेड लीटर तक ही पाचक रस बनाता है | यदि हम 24 घंटों में एक बार भर पेट खाते हैं तो यह पाचकरस हमारे संपूर्ण भोजन को पूरी तरह अच्छे से पचा सकता है | यदि हम 24 घंटो में दो बार खाएं तो भी हमारा भोजन ठीक से पच जाएगा | मात्र शर्त यह है कि दो भोजन के बीच में कम से कम 8 घंटे का अंतराल हो, यह तभी संभव है जब हम सवेरे का भोजन 9:00 बजे कर लें और शाम का भोजन 6:00 बजे लें लें | दो से अधिक बार भोजन करने से पाचक रस की कमी के कारण में न पचे भोजन का प्रतिशत बढ़ने लगता है और दो भोजन के बीच का अंतराल कम होते जाता है और यह दोनों बातें हमारे आरोग्य के लिए बहुत हानिकारक है | यदि हम भोजन को अधिक से अधिक तीन बार करेंगे तो भी भोजन पचने की कार्य क्षमता 100% रहेगी और यदि भोजन को तीन से अधिक बार करेंगे तो भोजन पचने की कार्य क्षमता कम होती जाएगी व दिन में 10 बार भोजन करेंगे तो वही कार्य क्षमता 10% रह जाएगी |यदि इस प्रकार बार-बार खाते जाए तो एक समय ऐसी अवस्था आ जाएगी कि पेट में जो भोजन पड़ा है उसको पचाने के लिए अपना पाचक रस समाप्त हो चुका होगा इसके बाद भी यदि और भी भोजन पेट में डाला तो पैंक्रियास को अपना मूल कार्य करने यानी इंसुलिन बनाना छोड़कर पाचक रस बनाने को प्राथमिकता देनी पड़ेगी | इस प्रकार अधिक कार्य करते रहने से वह निष्क्रिय हो जाएगी वह मधुमेह जैसी बीमारी पैदा हो जाएगी |
दिन में दो भोजन के बीच का अंतराल 8 घंटे और रात से दूसरे दिन तक सुबह के भोजन का अंतराल कम से कम 14 घंटे का होना चाहिए , क्योंकि यदि पेट बिना भोजन के कण के 9 घंटे रहेगा तब भी पेट के शुद्धिकरण की क्रिया आरंभ होगी और यह तभी संभव है जब हम शाम को 6:00 बजे भोजन करें ताकि भोजन रात्रि 10:00 बजे तक पेट से छोटी आँत की और निकल जाए व रात्रि 10:00 बजे से लेकर दूसरे दिन सुबह 6:00 बजे तक का 12 घंटे का अंतराल पेट को बिना भोजन के कण के मिल जाए | तब 9 घंटे शुद्दीकरण की क्रिया शुरु होने को और दो बार पेट से लेकर गुदाद्वार तक की पेट की शुद्धिकरण की क्रिया को पूरी करने का समय मिल जाए | एक बार की शुद्धिकरण की क्रिया को डेढ़ घंटा लगता है अत: इस क्रिया द्वारा पेट का मल, मृत जीवाणु तथा जिस भोजन का शोषण पानी के अभाव में न हुआ हो वह सब पेट से निकालकर गुदाद्वार तक पहुंचा दिया जाएगा | यह 14 घंटे पाचन संस्था को पूरी तरह शुद्ध करने के लिए पेट के लिए, म्यूकस मेंब्रेन को एसिड द्वारा जो क्षति होती है उसे ठीक करने के लिए व आने वाले भोजन के लिए पर्याप्त मात्रा में पाचक रस बनाने के लिए पर्याप्त है |
यदि भोजन के प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन हमारे आरोग्य का नाश करता है तो पानी के प्राकृतिक नियमों का उल्लंघन हमारे आरोग्य का सर्वनाश करता है | जैसे ही हम भोजन पेट में डालते हैं पेट तुरंत भोजन को पचाने के लिए एसिड व पाचक रस छोड़ता है यदि हम भोजन करते समय चौथाई गिलास भी पानी पी लें तो-
१) एसिड को पानी पीकर पतला ना किया जाए तो यह एसिड भोजन, पानी आदि के द्वारा हमारे पेट में पहुंचे बीमारी पैदा करने वाले जीवाणुओं को मारता है | दस लाख की संख्या में भी यदि यह जीवाणु पेट में पहुंच जाएं तो यह एसिड उन जीवाणुओं को मारने की क्षमता रखता है लेकिन पानी पी लेने के कारण एसिड की यह क्षमता कम हो जाती है व बीमारी पैदा होती है |
२) एसिड यदि पानी द्वारा पतला ना किया जाए तो यही एसिड पेट में प्रोटीन के पहले चरण का पचन अर्थात पेप्टिक बॉन्ड एंड साल्ट ब्रिज को तोड़कर जटिल प्रोटीन को पचने लायक बना देगा और यदि प्रोटीन के पहले चरण का पाचन पेट में ना हुआ तो यह प्रोटीन पेट के आगे भी पूर्ण रूप से पचे बिना ही मल बनकर निकल जाएगा व शरीर को पोषकता नहीं देगा | यही कारण है कि अच्छे से अच्छे प्रोटीन, दालें, सब्जी, मांस, मछली, सूखा मेवा आदि खाने पर भी हमारे शरीर में प्रोटीन की कमी रहेगी हमें हमेशा थकान सी अनुभव होगी और ताजगी नहीं आएगी |
३) यह एसिड यदि पानी द्वारा पतला ना किया जाए तो यह पेट में कार्बोहाइड्रेट के पहले चरण का पचन अर्थात Polysaccharides का Disaccharides में रूपांतरण करेगा | यदि कार्बोहाइड्रेट के पहले चरण का पचन पेट में ना हो सका तो यह कार्बोहाइड्रेट पेट के आगे भी पूर्ण रूप से पचे बिना ही मल बनकर निकल जाएगा, शरीर को पोषकता नहीं देगा व हमें हमेशा थकान सी महसूस होगी और ताजगी नहीं आएगी |
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[elfsight_popup id="2"]My content[elfsight_popup id="2"]पाचक रस भोजन को तब ही ठीक से पचाता है जब पाचक रस की सांद्रता व तापमान घटाएं ना जाए व पीएच का मान बढ़ाया ना जाए |
१) यह पानी हमारे पाचक रस को पतला कर उसकी सांद्रता को घटा देता है परिणामस्वरुप कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन का पचन ठीक से नहीं हो पाता |
२) यह पानी ऑप्टिमम पचन के लिए लगने वाले 37 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान को घटा देता है परिणाम स्वरुप भोजन का पाचन ठीक से नहीं हो पाता |
३) पानी भोजन के लिए लगने वाले विशिष्ट पीएच मान को बढ़ा देता है जिसकी वजह से पचन ठीक से नहीं हो पाता | वसा का पाचन तो पेट में होता ही नहीं |