काम, क्रोध, लोभ, मोह, राग, द्वेष, ईर्ष्या व अहंकार आदि विकारों को कई ग्रंथ शत्रु कहते हैं, लेकिन विकार शत्रु हैं या मित्र यह तो उनके उपयोग अथवा आशय पर निर्भर करता है | जैसे एक गुंडे ने चाकू से किसी का पेट चीर दिया वही एक डॉक्टर ने भी चाकू से किसी दूसरे व्यक्ति का पेट चीर दिया | गुंडे का उदेश्य शत्रु को जान से मारने का था व डॉक्टर का जान बचाने का दोनों ने एक ही क्रिया की तो अब चाकू को मित्र माना जाए या शत्रु |
जब हमें क्रोध आता है तो हमारे शरीर में क्या क्या क्रियाएं होती है- क्रोध आते ही सबसे पहले हमारे मन में क्रोध दिलाने वाले को गाली देने, पीटने या उसकी हत्या तक करने की बात आती है, लेकिन यह सब करने के लिए तो सामान्य अवस्था से कई गुना अधिक शक्ति की आवश्यकता पड़ेगी, हमारा मस्तिष्क, सबसे पहले रक्त के एड्रीनलीन नामक हार्मोन छोड़ता है, जो ह्रदय की धड़कन तेज कर देता है, मांसपेशियों की और रक्त की सप्लाई काफी बढ़ा देता है रक्त में ग्लूकोज को बढ़ा देता है, रक्त में आक्सीजन की मात्रा बढ़ा देता है | परिणाम स्वरुप शरीर की शक्ति, मारपीट करने की गति कई गुना बढ़ जाती है व मनुष्य को इस आपातकालीन परिस्थिति से निपटने के लिए सेकेंडों में ही तैयार कर दिया जाता है |
यदि हमने, मारपीट, गाली-गलोच करके इस इस बढ़ी हुई शक्ति व संबंधित सारी रसायनिक प्रक्रिया को पूर्णता प्रयोग कर लिया तो ठीक लेकिन यदि प्रयोग करने का अवसर नहीं मिला तो एक तो हम दो तीन दिनों का क्रोध से जलते रहेंगे, हमारी सारी नसें अकड़ी रहेगी वह दूसरा, शरीर द्वारा छोड़े गए यह सारे रसायन बेचैनी बढ़ा देंगे, भूख मिटा देंगे, नींद गायब कर देंगे, कब्ज कर देंगे, रक्तचाप बढ़ा देंगे व हार्ट-फेल कर हमें मार डालेंगे |
क्रोध तो भगवान ने सारे मनुष्य व जानवरों को आपातकालीन परिस्थिति से निपटने के लिए, अथार्थ “करो या भागो” के लिए ही दिया है लेकिन हम उसका दुरूपयोग अपने अहम/अहंकार की तुष्टि के लिए करने लगे व रोगों के रूप में सजा भी भोगने लगे | अब आप ही विचार कीजिए कि यदि हम क्रोध नहीं करेंगे तो क्या जीवित नहीं रह सकेंगे ? मर जाएंगे ? उच्च कोटि के संत स्वार्थ-सिद्धि के लिए कभी क्रोधित नहीं होते इसलिए, उनके चेहरे कितने पावन व सुंदर लगते हैं व वे सदा निरोगी भी रहते हैं लेकिन एक सदा क्रोधी-मनुष्य का चेहरा कभी इतना पावन व सुंदर लग सकता है ?