“घानी का तेल हृदय व संपूर्ण स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम है”
जब भी हम किसी खाद्य पदार्थ पर कोई रासायनिक प्रक्रिया करते हैं (अर्थात उसमे कोई रसायन मिलते या उस खाद्य पदार्थ का कोई घटक निकाल लेते हैं) तब उस पदार्थ का नैसर्गिक संतुलन बिगड़ जाता है व वह खाद्य पदार्थ नैसर्गिक ना रहकर कृत्रिम बन जाता है, ऐसा कृत्रिम खाद्य पदार्थ शरीर के आरोग्य के लिए बहुत ही हानिकारक होता है व अनेक गंभीर स्वरुप की असाध्य दीर्घकालीन बीमारियों के जन्म का कारण बनता है | उदाहरणार्थ-रिफाइंड तेल, शक्कर, रिफाइंड नमक, मैदा इत्यादि |
हम लोगों के दिमाग में यह भर दिया गया है कि रिफाइंड तेल हृदय के स्वास्थ के लिए सर्वोत्तम है लेकिन वास्तविकता इसके विपरीत है | रिफाइंड तेल पिछले पांच से छह दशक पहले भारत में आया, उस समय भारत में ह्रदय रोगियों की संख्या लगभग 5% थी व यह हृदय रोग की उम्र 60 साल पार कर चुके लोगों में ही सुनने में आता था | रिफाइंड तेल आने के दो-चार दशक बाद ही भारत में ह्रदय रोगियों की संख्या 25% दक्षिण भारत में वह 12% मध्य भारत में हो गई है वह मेट्रो में 30-40% तक पहुंच गई है | अब तो यह हृदय रोग 20 के युवकों को ही होने लगा है | यदि वाकई में रिफाइंड तेल ह्रदय के लिए इतना ही अच्छा था तो फिर यह अवस्था कैसे आई ? इसका उत्तर तेल को रिफाइन करने की प्रक्रिया से बखूबी मिल जाता है | रिफाइन करने की प्रक्रिया का नाम है ‘Solvent Extraction’
प्रश्न यह है कि जब हम सदियों से घानी का तेल खाते आ रहे थे व हृदय रोग भी बहुत कम लोगों को होता था तो हमारी सरकार ने भारत में रिफाइंड तेल बनाकर बेचने के लिए विदेशी कंपनियों के साथ करार क्यों किए ? हो सकता है रिफाइन करने के नाम पर तेल से स्वास्थ्यवर्धक महत्वपूर्ण घटक निकालकर ऊंचे दामों पर बेच दिए जाते हो |
किसी भी प्रकार का रिफाइंड तेल और सोयाबीन, कपास, पाम, राइस ब्रान, वनस्पति घी का प्रयोग विषतुल्य है | उसके स्थान पर मूंगफली तेल, सरसों, नारियल के घानी वाले तेल का ही प्रयोग करें |
हमारे शरीर को लगने वाले सारे मिनरल्स समुद्र की नमक और सेंधा नमक में मौजूद हैं, सदियों से हम यही नमक खाकर निरोगी जीवन जी रहे थे | रिफाइंड तेल के ही जितना घातक रिफाइंड नमक भी है | क्या समुद्र का नमक सच में अशुद्ध है ? नमक तो स्वयं में एक प्रिज़र्वेटिव है जिसने कोई सा भी जीवाणु जीवित नहीं रह सकता और इसी कारण सारे आचार इत्यादि में नमक ही प्रिजर्वेटिव के रूप में प्रयुक्त होता है | दूसरा, समुद्र के पानी से समुद्री नमक सूर्य की गर्मी, इन्फ्रारेड और अल्ट्रावायलेट किरणों द्वारा बनता है और यह दोनों किरणें जीवाणुनाशक है फिर भी समझ में नहीं आता कि समुद्री नमक अशुद्ध नमक क्यों माना जाता है व उसे शुद्ध करने की आवश्यकता क्यों है ? समुद्री नमक से रिफाइंड नमक बनाने के लिए एक बड़ी इंडस्ट्री की आवश्यकता होती है व बहुत ही सस्ते समुद्री नमक पर बहुत ऊर्जा, धन व समय खर्च करके जटिल प्रक्रिया द्वारा रिफाइंड नमक बनाया जाता है व ऊंचे दामों पर बेचा जाता है, आरोग्य की दृष्टि से यह नमक बहुत ही हानिकारक है |
१) इनमें कोई सा भी रसायन (केमिकल) डाला या निकाला नहीं जाता है | प्राकृतिक होने के कारण यह नमक हमारे शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक है व इनमें हमारे शरीर को लगने वाले सारे मिनरल मौजूद रहते हैं |
२) इन मिनरलों के अलावा इनमें ट्रेस मिनरल्स भी रहते हैं |
३) इन मिनरलों (मैग्नीशियम, कैल्शियम, पोटैशियम, लोहा आदि) व ट्रेस मिनरल्स की मौजूदगी में ही सोडियम ठीक से शरीर को आरोग्य रख पाता है |
४) सेंधा व समुद्री नमक की पहचान- इन्हे जीभ पर रखते ही लार निकलने लगती है पर रिफाइंड नमक खाने पर केवल वह खट्टा लगता है कोई लार नहीं निकलती |
१) उच्च रक्तचाप, हार्ट की समस्या
२) गुर्दे का खराब होना, गुर्दे की पथरी, पित्ताशय की पथरी
३) जोड़ों का दर्द, गठिया
४) प्रोटेस्ट
५) नामर्दी
६) आँख व कान व गले के रोग आदि
७) शरीर में जगह-जगह सूजन
८) संतान का ना होना
९) अल्जाइमर वह पार्किंसन की बीमारी (एल्युमीनियम के कारण)
कोशिकाओं में जाते ही 1 ग्राम नमक अपने स 23 गुना ज्यादा पानी कोशिकाओं से खींच लेता है व शरीर पर जगह-जगह सूजन उत्पन्न करता है | कभी-कभी कोशिकाएं पानी के अभाव में मर भी जाती है | कोशिकाओं में उत्पन्न हुए पानी के अभाव के कारण, ज्यादा नमक खाने वालों को ज्यादा प्यास लगती है |
अनेक वर्षों तक आयोडीन युक्त नमक खाने पर भी थायराइड की बीमारी ठीक नहीं होती अर्थात आयोडीन युक्त नमक थायराइड की बीमारी के लिए उपयुक्त नहीं है |
१) शक्कर स्वयं के मेटाबोलीज़्म (पाचन) के लिए हमारी हड्डियों, मसल्स, टिशूज आदि की गहराई में स्थित कैल्शियम मैग्नीशियम सोडियम व पोटेशियम आदि को खींचकर निकाल लेता है व ऑस्टियोपोरोसिस, दांतों की बीमारी व जोड़ों का दर्द आदि को जन्म देता है |
२) शक्कर हमारे रक्त को बहुत गाढ़ा में चिपकने वाला बना देती है जिससे खास करके हृदय एवं मस्तिष्क की सूक्ष्म रक्त वाहिनियों से यह गाढ़ा व चिपकने वाला रक्त हृदय में मस्तिष्क के अनेक भागों में पहुंच नहीं पाता व परिणाम स्वरुप हार्ट अटैक, ब्रेन हेमरेज, पैरालाइसिस जैसी बीमारियां व अन्य कई बीमारियां उत्पन्न हो जाती है |
३) रक्त में शक्कर (ग्लूकोस) की मात्रा सामान्य से अधिक होने पर यह ग्लूकोस कोशिकाओं के प्रोटीन को चिपककर कोशिकाओं की क्रियाओं को बिगाड़ देता है परिणाम स्वरुप गुर्दे की बीमारी, शरीर के अंगों को काटने की नौबत आना व आंखों की बीमारियां आदि पैदा हो जाती है |
४) रक्त में शक्कर की मात्रा सामान्य से अधिक होने पर जब कोशिकाएं मरती है तो कोशिकाओं के डीएनए व आरएनए का रूपांतर प्यूरिन्स में हो जाता है व प्यूरिन्स से यूरिक एसिड उत्पन्न होता है | यह यूरिक एसिड नाइट्रिक ऑक्साइड की मात्रा को घटा देता है वह आंजियोटेनसिन नामक हार्मोन की मात्रा बढ़ा देता है जिसके कारण रक्त नलिकाओं के स्मूद मसल सेल्स सिकुड़ जाते हैं, रक्तचाप बढ़ जाता है व गुर्दे खराब होने शुरू हो जाते हैं |
५) यूरिक एसिड के कारण हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, हाइपरटेंशन, मोटापा, स्ट्रोक व गुर्दे की बीमारी आदि पैदा हो जाती है |
६) शक्कर के पचन के समय उत्पन्न होने वाले विषैले तत्व हमारे मस्तिष्क व नाड़ी संस्थान में एकत्रित होते हैं | जिसके कारण मस्तिष्क वह नाड़ी संस्था की कोशिकाएं मर जाती है वह परिणाम स्वरूप, मस्तिष्क व नाड़ी संस्था के संबंधित बीमारियां उत्पन्न हो जाती है |
७) मस्तिष्क व नाड़ी संस्था को सामान्य रूप से कार्य करने देने के लिए ग्लुटॅमिक एसिड की आवश्यकता होती है जो सब्जियों में पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है |
८) शक्कर जब हमारी आँतो में पहुंचती है तो वह विटामिन बी-कांपलेक्स पैदा करने वाले जीवाणुओं को मार डालती है | विटामिन बी-कॉंप्लेक्स की कमी के कारण ग्लुटॅमिक एसिड नहीं बनता व ग्लुटॅमिक एसिड की कमी के कारण इंसुलिन कम बनने लगता है व इंसुलिन की कमी के कारण रक्त में शक्कर की मात्रा बढ़ जाती है और इस प्रकार चक्र बन जाता है जो मधुमेह को जन्म देता है | परिणाम स्वरुप बच्चों में अपराध करने की प्रवृति, अल्पकाल के लिए याददाश्त में कमी व उनींदे रहने की बीमारी आदि पैदा हो जाती है | सब अपराधी बहुत ज्यादा शक्कर खाते हैं अतः शक्कर भी एक नशा है |
९) शक्कर हर मिनरल (कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, पोटेशियम आदि) खास करके कैल्शियम, आयरन व फास्फोरस के मेटाबॉलिज्म को बिगाड़ देती है | जिससे कैल्शियम शरीर में कहीं भी जमा होने लगता है और जब वह पित्ताशय में जमा होता है तो कॉलेस्ट्रॉल के साथ मिलकर पित्ताशय की पथरी बना देता है |
१०) शक्कर में फाइबर, प्रोटीन, मिनरल, फेट आदि कुछ भी नहीं होने के कारण शक्कर बहुत सी बीमारियां पैदा करती हैं | शक्कर में केवल कैलोरीज (ग्लूकोस) ही है |
११) मोटे लोग सावधान- जब हम जरूरत से ज्यादा कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व फेट खाते हैं तो अंत में सभी का रूपांतरण ट्राइग्लिसराइड में हो जाता है जो मोटापा बढ़ा देता है | यह केवल भ्रम है की मोटापा केवल तेल, घी आदि खाने से ही होता है |
१२) शक्कर कोलेस्ट्रॉल तनाव-चिंता बढ़ा देती है |
१३) शक्कर बच्चों में हाइपरएक्टिविटी, मस्तिष्क को केंद्रित ना कर पाना, उत्साह में कमी हो जाना आदि बीमारियां पैदा करती है |
१४) शक्कर ग्रोथ हार्मोन को कम कर के बुढापा जल्दी लाती है |
१५) जो बच्चे ज्यादा शक्कर खाते हैं उन्हें एग्जिमा हो जाता है |
१६) शक्कर पाचन संस्थान में एलर्जी पैदा करती है |
१७) जो व्यक्ति ह्रदय रोग, संतान का ना होना, रक्त की खराबी, बार-बार पेशाब लगना, खून की कमी, कैंसर आदि बीमारियों से पीड़ित है वे शक्कर का उपयोग करना वह चाय पीना तुरंत बंद कर दें | (बार-बार पेशाब वाले गुड़ व काले तिल का सेवन करें व प्रदर वाले 1:1 के अनुपात में गुड वे देशी घी का सेवन करे |
१) मैदा में एलोक्जल नामक एक रसायन है जो हमारी अग्नाशय में उपलब्ध इंसुलिन बनाने वाली बीटा कोशिकाओं को मार देता है और टाइप-टू डायबिटीज उत्पन्न करता है |
२) मैदा में/गेहूं के आटे में पर्याप्त मात्रा में आग्जलेट रहता है अतः गुर्दे व पित्ताशय की पथरी से पीड़ित लोग इसका सेवन अधिक मात्रा में ना करें |
३) मैदा के कारण बहुत ही महीन होते हैं इसी कारण मैदा से बने पदार्थों (खास करके बेकरी पदार्थों) का सेवन से पचन के बाद बनने वाला मल बहुत ही चिपकने वाला व कठोर और सख्त हो जाता है | जिस कारण गंभीर स्वरूप का कब्ज/मलावरोध हो जाता है | आज यदि छोटे बच्चे मैदे के बने पदार्थों का सेवन कर रहे हैं तो भविष्य में वे शत-प्रतिशत गंभीर स्वरूप के कब्ज/मलावरोध के शिकार होंगे |
४) मैदे के कारण बहुत ही महीन व चिपकने वाले होने से जब हम मैदे से बने पदार्थों का सेवन करते हैं जब पेट में पाचक रस इन मैदे के बने पदार्थों के भीतर तक नहीं पहुंच पाता | जिसके कारण इन का पचन ठीक से नहीं होता, पचन ठीक से ना होने से भोजन पेट में ही सड़ने लगता है, जिसके कारण वात की 80, पित्त की 40 और कब्ज की 20 बीमारियां पैदा होती है |
५) आयुर्वेद के अनुसार कब्ज/कॉन्स्टिपेशन (अथवा मैदा) हर रोगों की जननी है |